Sholagarh @ 34 Kilometer-1 in Hindi Detective stories by Kumar Rahman books and stories PDF | शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 1

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शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 1

जासूसी उपन्यास
शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर
@ कुमार रहमान

© कॉपी राइट एक्ट के तहत जासूसी उपन्यास ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर’ के सभी सार्वाधिकार लेखक के पास सुरक्षित हैं। किसी भी तरह के उपयोग से पूर्व लेखक से लिखित अनुमति लेना जरूरी है।

डिस्क्लेमरः उपन्यास ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर’ के सभी पात्र, घटनाएं और स्थान झूठे हैं। और यह झूठ बोलने के लिए मैं शर्मिंदा नहीं हूं।

बिल्ली की चोरी

कम से कम सार्जेंट सलीम ने ऐसी खूबसूरत लड़की अपनी जिंदगी में पहले कभी नहीं देखी थी। सबसे सुंदर उस लड़की की आंखें थीं। ऐसा लगता था कि ख्वाब देख रही हों। शायद ऐसी ही आंखों को शायरों ने ख्वाब आवर आंखें कहा होगा।

थोड़ा लंबा सा किताबी चेहरा। उस पर बाल की एक लट मालती की बेल की तरह झूल रही थी... जिसे वह बार-बार हाथों से हटा रही थी। चेहरे की रंगत ऐसी थी, जैसे दूध में हल्का सा लाल गुलाल मिला दिया गया हो। भवें किसी कमान की तरह खिंची हुईं। आंखों के तीर वहीं से छोड़े जाते थे। सार्जेंट सलीम पलकें झपकाए बिना एक टक उसे देखे जा रहा था।

आज सनडे था और होटल सिनेरियो की आज की थीम थी मिस्ट्री। सिनेरियो की यही खास बात थी। हर सनडे को होटल की कोई खास थीम होती थी। उस थीम के हिसाब से ही होटल को बाहर से लेकर अंदर तक नया लुक दिया जाता था।

आज होटल की बाहरी इमारत पर 'मिस्ट्री' थीम के मुताबिक ही लाल और नीली रोशनी डाली जा रही थी। होटल में घुसते ही झींगुरों की झनकार पूरे माहौल को मिस्ट्रीरियस बना रही थीं। यह आवाज़ साउंड सिस्टम से निकाली जा रही थी। बड़ी-बड़ी मूंछों वाला गेट का दरबान भी रहस्यमयी लग रहा था।

होटल का मैनेजमेंट अपने परमानेंट कस्टमर को तीन दिन पहले ही थीम के बारे में बता देता था। उस दिन यहां ज्यादातर लोग उसी थीम के मुताबिक ही आते थे।

सलीम भी यहां का रेगुलर कस्टमर था। वह भी थीम के हिसाब से अपनी पर्सियन कैट के साथ यहां आया था। उसने काले सूट पर फेल्ट हैट लगा रखी। उसने हैट से अपना आधा चेहरा ढक रखा था।

सलीम के साथ आई बिल्ली पूरी तरह से काली थी। अलबत्ता उसकी आंखें नीली थीं। आम तौर पर पर्सियन बिल्लियों की आंखें पीली होती हैं। नीली आंखों वाली पर्सियन बिल्लियां रेयर होती हैं। यही वजह है कि उनकी कीमत पीली आंखों वाली बिल्लियों से कहीं ज्यादा होती है। सलीम की बिल्ली का नाम लूसी था।

उसके गले में पड़े पट्टे पर सोने की कढ़ाई की हुई थी। पट्टे पर उसका नाम लूसी भी लिखा हुआ था। इस पट्टे से चांदी की जंजीर बंधी हुई थी। एक कुर्सी पर सार्जेंट सलीम बैठा हुआ था और दूसरी पर बिल्ली आराम कर रही थी।

वह खूबसूरत लड़की बड़ी बेतकल्लुफी से बिल्ली को गोद में उठा कर उसी सीट पर बैठ गई थी। लड़की बिल्ली के लंबे रेशमी बालों में उंगलियां फेर रही थी और प्यार से उसे पुचकार भी रही थी।

दिलचस्प बात यह थी कि लड़की ने एक बार भी सार्जेंट सलीम की तरफ नहीं देखा था। इसके उलट सलीम लगातार उस लड़की को ही देखे जा रहा था। वह उसे कालिदास के किसी नाटक की नायिका लग रही थी।

अभी सलीम उससे बात शुरू करने के बारे में सोच ही रहा था कि एक नौजवान आ पहुंचा और उसने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा, “चलो डार्लिंग! अभी टाइम है... कुछ देर बाद लौटकर आते हैं।”

लड़की ने लूसी को कुर्सी पर बहुत आहिस्ता से बैठा दिया। जैसे वह शीशे की हो और हल्का सा जर्ब लगते ही टूट जाएगी। सार्जेंट सलीम उसे जाते हुए देखता रहा।

उसके जाने के बाद सलीम ने एक भरपूर नजर डायनिंग हाल पर डाली। अभी बहुत भीड़ नहीं हुई थी। तमाम सीटें खाली पड़ी थीं। वह यहां जरा जल्दी आ गया था।

उसने जेब से पाइप निकाला और उसमें वान गॉग ब्रैंड का तंबाकू भरने लगा। तंबाकू की खुश्बू आसपास फैल गई। वान गॉग, पाइप में पीने वाली खुश्बूदार तंबाकू होती है। पाइप जला कर वह हल्के-हल्के कश लेने लगा।

सलीम ने कुछ कश लेने के बाद पाइप की राख और बाकी बची तंबाकू ऐश ट्रे में झाड़ दी। उसे पाइप पीने में भी मजा नहीं आ रहा था। उसका मन उचाट हो गया था।

कुछ देर यूं ही बैठे रहने के बाद वह उठ खड़ा हुआ। उसने बिल्ली की जंजीर हाथों में थामी। लूसी भी जैसे बोर हो रही हो। वह भी तुरंत कुर्सी से कूद कर नीचे आ गई। सार्जेंट सलीम डायनिंग हाल से बाहर आ गया।

उसने पार्किंग से मिनी बाहर निकाली और मेन रोड पर आ गया। यह एक कन्वर्टिबल कार थी। यानी उसकी छत को कभी भी एक बटन दबाकर फोल्ड किया जा सकता था। सलीम ने बाहर निकलते ही कार की छत हटा दी। लूसी उससे सटकर बैठी हुई थी।

सलीम कार को यूं ही शहर में दौड़ाता रहा। उस पर उदासी का जबरदस्त दौरा पड़ा था। ऐसा अकसर उसके साथ होता था। काफी देर वह कार को यूं ही इधर-उधर दौड़ाता रहा। एक स्टोर पर उसने कार रोक दी और अंदर चला गया।

कुछ देर बाद वह वान गॉग का पाउच खरीद कर लौट आया। कार में बैठ कर उसकी नजरें लूसी को तलाशने लगीं, लेकिन वह कहीं नजर नहीं आई। उसने कार की लाइट जलाकर देखा तो जंजीर तो मौजूद थी, लेकिन लूसी लापता थी। वह परेशान हो गया। लूसी उसे बहुत प्रिय थी।

सलीम को बहुत गुस्सा आ रहा था। उसने यह हिमाकत की ही क्यों? क्यों लूसी को छोड़ कर अकेले अंदर चला गया? वह काफी देर यूं ही कार में बैठा पाइप पीता रहा। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि लूसी को कहां तलाशे। मन पहले से ही उचाट था, लूसी के गायब होने से वह और ज्यादा उदास हो गया।

वह समुंदर में चली गई

इस वक्त समुंदर के किनारे काफी भीड़ लगी हुई थी। सोने की थाल जैसा सूरज धीरे-धीरे पानी में डूब रहा था। हर कोई समुंदर की लहरों की तरफ देख रहा था। दूर तक सिर्फ पानी ही पानी था।

इन सब के बीच एक नौजवान दहाड़ें मार-मार कर रो रहा था। अजीब बात यह थी कि कोई उसे दिलासा देने वाला भी नहीं था। वह खड़े-खड़े ही रेत पर धड़ाम से बैठ गया और दोनों हाथों से सर पकड़ कर सिसकियां लेने लगा।

कुछ देर बाद पुलिस आ गई। उसने उस पूरे एरिया से लोगों को हटा दिया। कोतवाली इंचार्ज मनीष लोगों से घटना के बारे में पूछताछ करने लगा।

तभी मनीष की नजर जमीन पर बैठे आदमी की तरफ पड़ी। अब वह बैठा शून्य को निहार रहा था। मनीष ने उससे कई सवाल किए, लेकिन वह टस से मस न हुआ। भीड़ में से किसी ने उसे बताया कि वह लड़की के साथ ही आया था। मनीष उसके नार्मल होने का इंतजार करने लगा।

कुछ देर बाद एक हेड कांस्टेबल लोगों के बयान दर्ज कर रहा था। कोतवाली इंचार्ज मनीष भी साथ ही खड़ा था।

“साहब! मैंने दूर से देखा था। वह किसी हीरोइन सी सुंदर थी। डूबते हुए सूरज के साथ मोबाइल से फोटो खींच रही थी। उसके बाद वह धीरे-धीरे आगे बढ़ती चली गई। कुछ देर बाद एक ऊंची लहर में वह खो गई। जब तक कोई कुछ समझता उसका नामोनिशान नहीं था।” गुब्बारे बेचने वाले एक चश्मदीद ने हेड कांस्टेबल को बताया।

“किसी ने बचाने की कोशिश नहीं की?” मनीष ने पूछा।

“साहब! यहां तो लोग समंदर के पानी में खेलते-कूदते रहते ही हैं। किसी को अंदाजा ही नहीं हुआ कि वह पानी के इतने अंदर चली जाएगी। जब तक कोई कुछ समझता वह लापता हो गई थी।” गुब्बारे वाले ने तर्क दिया।

“तुमने उसे कब देखा था?” मनीष ने पूछा।

“साहब! यहां शाम को काफी भीड़ होती है, लेकिन वह बहुत सुंदर थीं, इसलिए हर कोई उसकी तरफ ही देख रहा था। मैंने उन्हें काफी दूर से देखा था। उस वक्त वह डूबते सूरज के साथ फोटो ले रहीं थीं।” गुब्बारे वाले ने बताया।

तभी एक आदमी एक छोटी बच्ची के साथ मनीष के पास आ कर कुछ बताने लगा। मनीष ने हेड कांस्टेबल से उसके बयान भी दर्ज करने को कहा।

“मेरा नाम राजेश है।” उस आदमी ने परिचय देते हुए बात जारी रखी, “मैं एक कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हूं। यह मेरी बेटी है प्रिया। वह दोनों अपनी वैगन के पास कुर्सी डाले बैठे हुए थे।” उसने वैगन की तरफ इशारा करते हुए कहा। वह रुक कर कुछ देर वैगन को ध्यान से देखने लगा।

“फिर क्या हुआ?” मनीष ने उसे टोका।

“ओह हां,” राजेश ने चौंकते हुए कहा, “मेरी बेटी ने उसे पहचान लिया था। वह फिल्म अभिनेत्री शेयाली थी। प्रिया सेल्फी के लिए जिद करने लगी। मैं जब उनके पास बेटी को लेकर पहुंचा तो उसके ब्वायफ्रैंड ने मुझे धक्के देकर वहां से भगा दिया। काफी बदतमीज और मगरूर आदमी है।” प्रोफेसर राजेश रुक कर फिर वैगन की तरफ देखने लगा। प्रोफेसर राजेश बहुत गुस्से में लग रहा था। उसका चेहरा लाल हो रहा था।

“इसके बाद क्या हुआ?” मनीष ने पूछा।

“शेयाली ने उसे रोकने की कोशिश भी की, लेकिन वह मुझे धमकियां देने लगा। प्रिया डर कर रोने लगी और मैं वहां से चला आया।” राजेश ने बताया।

“आप अपना पता और फोन नंबर नोट करा दीजिए। हो सकता है कि हमें आपकी जरूरत पड़े।” मनीष ने प्रोफेसर राजेश से कहा।

तभी डायमंड ब्लैक कलर की घोस्ट आकर कुछ दूर पर रुकी। उसमें से इंस्पेक्टर कुमार सोहराब और सार्जेंट सलीम उतर कर मनीष के पास आ गए।

“आप लोग!” मनीष ने दोनों को देख कर चौंकते हुए पूछा।

“क्या मामला निकल कर सामने आया।” इंस्पेक्टर सोहराब ने मनीष से हाथ मिलाते हुए पूछा।

“वह नई फिल्म अभिनेत्री शेयाली थी। अपने ब्वायफ्रैंड के साथ मेकअप वैगन से यहां घूमने आई थी। उसका ब्वायफ्रैंड वैगन के पास ही बैठ कर शराब पीने लगा और वह घुटनों तक पानी में खड़े होकर सनसेट के साथ सेल्फी लेने लगी। कुछ देर बाद ही वह गहरे पानी में उतरती चली गई। जब तक लोग कुछ समझ पाते, वह गहरे सागर में लापता हो गई थी।”

“उसका ब्वायफ्रैंड कहां है?” सोहराब ने समुंदर की तरफ देखते हुए मनीष से पूछा। उसके चौड़े माथे पर चिंता की गहरी लकीरें उभर आई थीं।

“वह सदमे में है। कुछ बोल नहीं पा रहा है। मैंने उसे वैगन में ही बैठा दिया है।” मनीष ने बताया।

“वैगन की निगरानी में दो कांस्टेबल तैनात कर दीजिए। कोई उससे बात न करने पाए। जब तक उसके बयान न दर्ज हो जाएं।” इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा।

मनीष ने दो कांस्टेबल वैगन की निगरानी के लिए भेज दिए।

“वह कहां डूबी थी?” इंस्पेक्टर सोहराब ने समुंदर को गहरी नजरों से देखते हुए सवाल किया।

मनीष ने उसे इशारे से बता दिया।

“गोताखोर बुलाए हैं?” इंस्पेक्टर सोहराब ने दोबारा सवाल किया।

“जी बस आते ही होंगे।” मनीष ने बताया।

“जल्दी कीजिए। कुछ देर बाद ही अंधेरा हो जाएगा। फिर बड़ी मुश्किल हो जाएगी।” सोहराब ने चिंता भरे स्वर में कहा।

कुछ इंतजार के बाद भी जब गोताखोर नहीं आए तो इंस्पेक्टर कुमार सोहराब ने सार्जेंट सलीम को समुंदर के किनारे के हिस्से में तलाशी के लिए कहा।

सार्जेंट सलीम अच्छा तैराक था। नेशनल लेवल तक तैराकी में हाथ आजमा चुका था। कुछ देर बाद ही वह पानी में उतर गया। तमाम लोग उसकी तरफ ही देख रहे थे। कुछ लोग मोबाइल से वीडियो बनाने लगे।

“बंद कीजिए यह तमाशा।” सोहराब ने बहुत तेज आवाज में कहा, “यहां किसी की जान चली गई है और आप लोगों को मजाक लग रहा है। बेहिसी की इंतेहा है।” सोहराब बहुत गुस्से में था।

उसको गुस्से में देख कर पुलिस वालों ने लोगों को लाठी फटकार कर दूर भगा दिया।

सलीम पानी में लबीं-लंबी डुबकियां लगा रहा था। कुछ देर बाद वह ज्यादा गहरे पानी की तरफ चला गया। इंस्पेक्टर कुमार सोहराब बहुत ध्यान से उस पर नजरें गड़ाए हुए था। समुंदर की लहरें तेज हो गई थीं।

दस मिनट की गोताखोरी के बाद सार्जेंट सलीम बाहर आ गया। उसके हाथ में एक मोबाइल फोन था।

तभी पास में एक ट्रक आकर रुका। सभी का ध्यान उसकी तरफ चला गया। उसमें से कुछ गोताखोर उतर रहे थे। कुछ देर बाद रस्सी से बांध कर ट्रक के पीछे वाले हिस्से में रखे स्टीमर को उतारा जाने लगा।

चार गोताखोर आए थे। उनके साथ कुछ मजदूर भी थे, जो स्टीमर उतारने में मदद कर रहे थे। कुछ देर बाद स्टीमर नीचे उतार लिया गया।

गोताखोरों ने पोशाक पहन ली और अब उनकी पीठ पर ऑक्सीजन सिलेंडर बांधा जाने लगा। स्टीमर को पानी में डालवकर स्टार्ट कर दिया गया। गोताखोर उस पर सवार हो गए। कुछ आगे जाने के बाद दो गोताखोरों ने पानी में छलांग लगाई और लड़की की तलाश शुरू हो गई।

सूरज ने भी पानी में डुबकी लगाई और फिर गायब हो गया। क्षितिज खून सा लाल दिख रहा था।

सोहराब बड़े ध्यान से गोताखोरों को देख रहा था। उसे कम ही उम्मीद थी कि शेयाली जिंदा बची होगी।

सार्जेंट सलीम ने कपड़े पहन लिए थे। उसने समुंदर से मिले मोबाइल को रूमाल से साफ कर दिया। काफी महंगा मोबाइल था। वाटर प्रूफ भी था।

उसने मोबाइल के बटन को हल्के से पुश कर दिया। स्क्रीन ऑन होते ही वह बुरी तरह से चौंक गया। वह बहुत ध्यान से मोबाइल की स्क्रीन को देखे जा रहा था। सलीम की बेचैनी बढ़ गई थी।

*** * ***

लड़की पानी में क्यों चली गई थी?
क्या लड़की मिल सकी?
सार्जेंट सलीम ने मोबाइल में क्या देख लिया था?

इन सवालों के जवाब पाने के लिए पढ़िए जासूसी उपन्यास ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर का अगला भाग...